Skip to main content

Full text of "Hazrat Muhammad (SAW) Eik Sanchipt Parichaya (H)"

See other formats


हजरत 


मुहम्मद 


सल्ल०) 
एक संक्षिप्त परिचय 


डॉ०मुहम्मद अहंमद 


हज़रत मुहम्मद (सल्ल० ) द 
एक संक्षिप्त परिचय 


कया आपने कभी सोचा कि इन्सानी ज़िन्दगी का असल 
मक़सद क्‍या है? इसकी वास्तविक मांग क्या है? इसको 
सजाने-संवारने और कामयांब बनाने की तदबीरें क्या हैं? वे 
कौन-सी चीज़ें हैं जिन्हें अपनाने से ज़िन्दगी में बहार आ सकती 
है? यह खुली हुई.बात है कि ईश्वर ने दुनिया बनायी और इसमें 
इन्सान को सभी जीवधारियों से श्रेष्ठ बनाया । इन्सानों पर ईश्वर 
का यह बड़ा एहसान है कि उसने इन्सानों को दूसरे जीवों के 
मुक़ाबले में विशिष्ट शक्तियां और योग्यताएं दीं। उसने अक़्ल 
देने के साथ सोचने-समझने और फ़ैसला करने की शक्ति दी । 
कर्म और इरादे का अख़्तियार दिया और इस बात की आज़ादी 
में उसकी परीक्षा भी रख दी कि इन्सान चाहे तो अच्छे काम 
करके ईश्वर की ख़ुशनूदी और प्रसनता प्राप्त कर ले और चाहे 
तो बुरे कर्म करके ईश्वर की नाराज़ी और प्रकोप का भागीदार 
बन जाए। इन्सान की सबसे बड़ी अक़्लमंदी यह है कि वह 
ईश्वर की बतायी हुई राह पर चले और उसकी प्रसनता प्राप्त - 
करे। ईश्वर बड़ा दयालु है। उसने हमारी ज़िन्दगी के लिए 
सैकड़ों सामान पैदा किये हैं। धरती और आकाश बनाये, सूरज, 
चांद और सितारों की रचना की, हवा, पानी आदि का प्रबन्ध 
किया, खाने-पीने की बहुत-सी चीज़ें बनायीं। उसने इन सबसे 

3 


- बढ़कर उपकार यह किया कि इन्सानों की रहनुमाई और उन्हें 
प्रकाशमान सीधा मार्ग दिखाने के लिए अपने नबियों, रसूलों 
और पैग़म्बरों को भेजने का सिलसिला शुरू किक-जो अल्लाह 
के रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्‍ल० पर समाप्त हो गया, क्योंकि 

किसी ओर ईशदूत के आने की ज़रूरत बाक़ी न रही । 

अंल्लाह ने इन्सानों को उनकी ज़िन्दगी का असल मक़्सद 

. बताने, उसे सजाने-संवारने और कामयाब बनाने के लिए जिन 
नेबियों, रसूलों और पैग़म्बरों को भेजा, वे सभी नेक और अच्छे 
इन्सान थे। सभी ने इन्सानों को इस्लाम की. शिक्षा दी। इन्सानों 
को अल्लाह की मर्ज़ी बतायी। सभी ने उपदेश दिया. कि 
: अल्लाह एक है | वही तुम्हारा और सारी दुनिया का उपांस्य है। 
उसी की ही पूजा, उपासना और इबादत करो । उसी के आगे 

* सिर झुकाओ, उसी से सहायता की प्रार्थना करो और उसी की. 

: आज्ञा का पालन करते हुए नेकी और भलाई के। साथ ज़िन्दगी 
गुज़ारो । यदि तुम ऐसा करोगे तो इसका बेहंतरीन 'बदला 
मिलेगा और जन्नत (स्वर्ग).नसीब होगी, लेकिन यदि तुमने ऐसा 
न किया और इरादे व अख़्तियार की अल्लाह द्वारा प्रदत्त 
आज़ादी का दुरुपयोग किया और उसकी आज्ञा का पालन नहीं 
किया तो कड़ी सज़ा मिलेगी और जहनम (नरक) के पात्र 
उहरोगे। लोग समय गुज़रने के साथ ही इन. शिक्षाओं को 
भुलाते रहे और उनमें नैतिकता और धारणा संबंधी बुराइयां पैदा 
होती रहीं। अत्यंत कृपशील और दयावान अल्लाह ने इन्सानों 

' की बदहाली को दूर करने और उनके सुधार व मार्गदर्शन के - 
. लिंए दुनिया.के हर हिस्से में अपने नबी, रसूल और पैग़म्बर भेजे, 
| हे "' 


जिन्होंने लोगों को अल्लाह की मर्ज़ी. पर चलकर ज़िन्दगी बिताने 
का तरीक़ा बताया । ह ः 

: इन्सानी सभ्यता की तरक़्क़ी के साथ-साथ जन-सुविधाओं 
का भी विकास हुआ। परिवहन, आवागमन कें रास्ते बने,- 
यांतायात के साधन बढ़े। दुनिया की विभिन्‍न. क़ौमों और 
विभिन क्षेत्रों में रहने वाले इन्सानों के बीच संपर्क बढ़ा । जल 
मार्ग खोजे गये और व्यापार-के साथ ही आचार-विचार काः 
आदान-प्रदान होने लगा | अब वह समय आ गया कि यदि 
सारी दुनिया के लिए ईश्वरीय जीवन-व्यवस्था भेजी जाए, तो वह 
दुनिया के लिए काफ़ी हो जाएं और सारी दुनिया के लोगों को 
संबोधित करके दो टूक अंद्राज़ में बह बता दिया जाए कि 
इन्सानों की. ज़िन्दगी का असल मक़्सद क्‍या हैं? उनका. 
सहज-स्वाभाविक धर्म कौन-सा रहा है और है? .अल्लाह की... 
मर्ज़ी क्या है? इन्सान को पैदा करने का मक़्सद क्या है? 
इन्सान कैसे अपने पालनहार की प्रसनता और निकटता प्राप्त 
कर सकता है? आदि | इसके लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह ने 
अपने एक सबसे अच्छे बन्दे हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० को अरब 
प्रायद्वीप में भेजा और आप.सल्ल० पर नुबूवत (ईशदूतत्व) के 
सिलसिले की ख़त्म कर दिया । इसमें ज़बरदस्त हिकमत मालूम 
होती है । अरब में हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० को भेजे जाने की एक 
वजह यंह भी थी कि अरब दुनिया में ऐसी जगह पर है, जहां से 
एशिया, यूंगेप और अफ्रीका सब निकट हैं। अरब इन सबके 
बीच में स्थित है। यहां से पूरी दुनिया को संबोधित करने की ' 
आसानी अच्छी तरह समझी जा सकती. है। अल्लाह ने हज़रत 


। 


मुहम्मद सल्‍ल० को इस्लाम की पूरी शिक्षा और जीवन-विधांन 
देकर इसलिए भेजा कि अब रहती दुनिया तक अल्लाह का भेजा 
हुआ उसका एकमात्र श्रिय धर्म--इस्लाम दुनिया के सभी इन्सानों 
को ज़िन्दगी का सीधा मार्ग दिखाता रहे ।._ 
इन्सानों को जो मौलिक शिक्षा हज़रत मुहम्मद सलल० ने दी, 
* वही पहले के नबियों की भी शिक्षा थी। आप सलल० ने 
बताया--लोगो ! तुम्हारा असली मालिक वही है जिसने तुमकोः 
पैदा किया । उसकी ही बन्दगी करो । वह अकेला है, उसका कोई 
साझी नहीं और उसके जैसा कोई नहीं | अल्लाह को हर चीज़ 
- की सामर्थ्य प्राप्त है। तुम उसी की आज्ञा का पालन करो। 
उससे बड़ा और महान कोई नहीं। मैं भी उसी का बन्दा हूं। 
उसके हुकक्‍्मों पर चलता हूं। अल्लाह -ने मुझे अपना पैग़म्बर 
, बनाया है। उसने वे सब बातें बता दी है; जिनसे वह ख़ुश होता 
है और वे बातें भी बता दी हैं जो-उसे पसंद नहीं । जो लोग मुझे 
अल्लाह का रसूल मानेंगे, उसकी भेजी हुई किताब (कुरआन) 
को सच्चा जानेंगे और अल्लाह के उन आदेशों पर चलेंगे जो 
उसने भेजे हैं, वही कामयाब होंगे । दुनिया की ज़िन्दगी परीक्षा 
की ज़िन्दगी है। असल ज़िन्दगी तो आख़िरत (परलोक) की 
ज़िन्दगी है। मरने के बाद एक दिन सारे इन्सान फिर ज़िन्दा किये, 
जाएंगे। सब अल्लाह के सामने पेश होंगे। जो दुनिया कौ 
ज़िन्दगी में उसकी मर्ज़ी पर चला.होगा, वह उस ज़िन्दगी में. 
हमेशा सुख भोगेगा और जिसने-उसके हुक्मों को न माना होगा, 
उसके लिए दुखद यातना है । 
हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० ने अल्लाह के हुक्मों को ठीक-ठीक 
6 हे 


इन्सानों तक पहुंचाया और स्वयं उन पर चलकर दिखा दिया। 
आप सल्ल० के पवित्र जीवन और कार्यों का इन्सानों पर 
दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा । जब आपका दुनिया में आगमन हुआ; 
तो सारी दुनिया पर अज्ञानता और अंधविश्वास का अंधकार 
छाया हुआ था। लोग अपने वास्तविक ईश्वर को भूल गये थे 
और अनेक प्रकार के उपास्ये बना डाले थे। इन्सानी सभ्यता 
विभिन कुसंस्कारों में फंसी सिंसक रही थी । आंप सलल्‍्ल० के. 
अनुपम व्यक्तित्व का यह कारनामा भी है कि इन्सान के 
. व्यक्तिगत और सामूहिक कुसंस्कारों-कुप्रवृत्तियों का ख़ात्मा हो 
गया। इन्सान की बिगड़ी प्रकृति का पूरी तरह सुधार हुआ और ' . 
इंन्सानी समाज में नयी क्रान्ति और चेतना आ गयी । मस्जिद से - 
बाज़ार, स्कूल से अदालत और घर से सार्वजनिक स्थल-सब 
जगह बदलाव दिखायी पंड़ने लगा और .इन्सान की चहुंमुखी . 
तरक़्क़ी एवं मैतिकता, न्याय और सदगुणों पर आधारित ज़िन्दगी - 
की आधारशिला रखी गयी । आप सल्‍ल० और आपके बाद के 
चारों आदरणीय ख़लीफ़ा-के काल में ऐसा ही आदर्श समाज 
वजूद में आया था और ऐसा हर काल में संभव हैं, आज भी यदि 
हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० की-शिक्षाओं और आपके बतावे हुए 
तरीक़े को ठीक-ठीक अमल में लाया जाए, तो यह दुनिया अम्न, 
शांति और सलामती का गहवारा बन सकती है एवं इन्सान 
लोक-परलोक की सफलता ग्राप्त कर सकता है । इस्लाम के द्वारा 
एक ऐसा स्वस्थ और मिसाली समाज वजूद में आ जाता है, जो 
ज्ुल्म-ज़्यादती, अन्याय, ऊंच-नीच, -भेद-भाव; छूृतछात और 
शोषण आदि बुराइयों-से मुक्त रहता है। शर्त यह है कि आप 
7 


सलल० की शिक्षाओं .और आपके तरीक़े को भली-भांति 
अपनाया जाए। . ब 
- अल्लाह के आख़िरी.पैग़म्बर और महानतम व्यक्तित्व हज़रत 
मुहम्मद सलल्‍ल० का इन्सानी सभ्यता पर एक बड़ा उपकार यह भी 
है कि आपने इन्पानों के संभी रिश्तों-नातों को मज़बूत बुनियादों 
पर खड़ा किया। एक-दूसरे की. ज़िम्मेदारियां स्पष्ट कों और 
सबके अधिकार और कर्तव्य. निश्चित किये ! यही वजह है कि 
नबी सलल० ने जिस इस्लामी राज्य का गठन किया, उसमें कोई 
वर्ग-संघर्ष और टकराव न था । उसमें वंश के गर्व और नस्ल की 
तंगनज़री का पूरी तरह अभाव था। उसमें धनवान, निर्धन, 
शिक्षित अशिक्षित सभी ,भाई-भाई बन गये | उसमें अपराध न 
के बराबर थे । लोग एक-दूसरे पर जुल्म करनेवाले, सरकारी माल 
और ज़िम्मेदारियों के ख़ियानत करनेवाले और रिश्वरतें 
* समेलेवाले न थे। हर एक दूसरे के काम आता था। यह 
बिल्कुल एक नयी दुनिया की तामीर की मुहिम थी। नबी 
सल्ल० ने 23 वर्ष की अपनी पैग़म्बराना ज़िन्दगी में लाखों 
. इन्सानों की ब़्िन्देगियां बदल दीं। उन्हें विशुद्ध एकेश्वरवादी 
बनाया और उनमें अल्लाह के सिवा दूसरों की बन्दंगी कदापि न 
कंरने की सुदृढ़ घारणा विकसित की । आप सल्‍्ल० ने उनकी 
इकट्ठा करके एक नयी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था 
बनायी । आपने इस व्यवस्था को अमल में लाकर सारी दुनिया 
को दिखा दिया कि आपके द्वारा पेश किये गये उसूलों के 
आधार पर कैसा समाज और जीवन बनता हें और दूसरी जीवन 
*अ्रणालियों के मुक़ाबले में वह कितना पवित्र, शुद्ध और 
आल 


कल्याणकारी है। इस महान कारनामे के आधार पर हज़रत 
मुहम्मद सल्‍ल० को 'सरवरे आलम” या 'विश्वनेता' कहते हैं। 
. आपका -यह कार्य किसी विशेष जाति या क़ौम के लिए न था, 
बल्कि सारी इन्सानी बिरादरी के लिए था। यह इन्सानियत की 
संयुक्त धरोहर है, जिस पर किसी का अधिकार किसी से कम 
या अधिक नहीं हैं। जिसकी - भी इच्छा हो, इससे लाभ उठा . 
सकता है, बल्कि ज़रूरत इस बात की हे कि प्रत्येक व्यक्ति इससे 
लाभ उठाये। अल्लांह की किताब कुरआन में -है--ऐ नबी ! 
हमने तो तुमको दुनियावालों के लिए रहमत (दयालुता) बनाकर 

भेजा है” (2] : 07) ! | 


' हज़रत मुहम्मद सलल० का संक्षिप्त जीवन-परिचय 

हज़रत मुहम्मद सलल० का पवित्र जीवन पूरी तरह इतिहास 
के प्रकाश में है। आप सल्‍ल० की शिक्षा और जीवन के बारे में 
हम जो कुछ भी जानना चाहें जान सकते हैं । आपका व्यक्तिगत, 
सामाजिक और राजनीतिक जीवन प्रकाश में हैं। आपकी पवित्र 
- जीवनी का ज़ो भी खुले मन से अध्ययन करेगा, वह इसी नतीजे 
. पर पहुंचेगा कि आप सारी इन्सानियत के हितैषी, उपकारक, 
उद्धारक और पथ्-प्रदर्शक एवं आदर्श हैं। आपकी शिक्षांओं का 
अनुसरण करके प्रत्येक व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी सुधार सकता है। 
अब आइए हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० के पवित्र जीवन पर, एक 
संक्षिप्त दृष्टि डाल लें, ताकि सामान्य जन उस रिश्ते और मधुर 

संबंध को भलीभांति जान लें जो उनके और आप सल्‍ल० के. 
बीच पाया जाता है। आप सलल० का जन्म अरब के मशहूर. 


9: 


शहर मक्का में [2 रबीउल अव्वल, सोमवार को.सन्‌ 57] ई० में 
प्रतिष्ठित क्ुरैश वंश में हुआ था। जन्म से पहले ही आपके 
पिता अब्दुल्लाह की मृत्यु हो चुकी थी। शुरू में आपके दादा 
अब्दुल मुंत्तलिब ने पाला, फिर उनके मरने के बाद चचा अबू 
तालिब ने पालन-पोषण किया । अभी आप छह साल के थे कि 
आपकी मां का भी देहान्त हो गया। बचपन ही से आपके 
स्वभाव में ऐसी नरमी, आकर्षण और विनग्रता थी कि परिवार 
और शहर के लोग आपका आदर करते थे। आपकी सच्चाई 
और नेकी की चारों तरफ़ चर्चा होने लगी । 

क़ुरैश के लोगों का पेशा व्यापार था। मुहम्मद सल्‍ल० के 
चचा अबू तालिब भी व्यापार करते थे | एक बार १2 वर्ष की उम्र 
में आप सल्‍ल० चचा के साथ एक तिजारती सफ़र पर शाम 
(सीरिया) गये । जवान हुए तो कारोबार के लिए दूसरे व्यापारियों 
का माल लेकर स्वयं शाम जाने लगे। आप लेन-देन और 
मामलात में इतने सच्चे और खरे थे कि लोग आपको 'सादिक़' 
(सच्चा) और 'अमीन! (अमॉनतदार) की उपाधि के साथ पुकारा 
करते थे। आपकी शोहरत सुनकर हज़रत ख़दीजा नामक एक 
धनवान विधवा ने भी आपको व्यापारिक सामान देकर सफ़र पर 
भेजा। वे आपके काम, सच्चाई और ईमानदारी से बहुत 
प्रभावित हुईं और बड़े-बड़े सरदारों के पैग़ाम को नज़रअंदाज़ 
करते हुए आपसे विवाह के लिए अपनी एक सहेली द्वारा आपके 
पास प्रस्ताव भेजा, जिसे आपने चचा की अनुमति से स्वीकार 
करके उनसे विवाह कर लिया। उस समय हज़रत ख़दीजा की 
उम्र 40 वर्ष की थी और आप सलल० 25 वर्ष के थे। आप 

70 


सलल० उस समय की सामाजिक कुरीतियों और लोगों की 

. समस्याओं से बहुत दुखी थे। आप मक्का से लगभग 6 मील, . 
की दूरी पर स्थित 'हिरा' नामक गुफा में जाकर अल्लाह को याद “ 
करते और लोगों को संकट से उबारने के लिए उससे दुआएं, 
करते । आपकी उम्र चालीस वर्ष की थी, जब अल्लाह ने आपको 

* अपना नबी (रसूल; पैग़म्बर बनाया । एक दिन गुफा में आप पर 
अंल्लाह की ओर से वहय (प्रकाशना) आयी और 'भटकी हुई 
इन्सानियत को सीधा मार्ग दिखाने और ईश्वरीय सन्देश पहुंचाने 

का काम आपके ज़िम्मे कर दिया गया.। अल्लाह ने मानव- 
कल्यांण. के लिए आप, पर दिव्य ग्रंथ कुरआन उतारने का - 
सिलसिला शुरू किया, जो 23 वर्षों में पूरा हुआ | अल्लाह की .. 
ओर से 'वहय' आने और नबी बनाये जाने के साथ ही हज़रत . 
मुहम्मद सल्‍ल० के जीवन का धर्म-प्रचार काल शुरू होता है। 


अल्लाह. के. आदेशानुसार आप इन्सानों के मार्गदर्शन और . 


रहनुमाई का काम करते रहे। समाज के स्वार्थी और सत्तावान 
लोगों ने आपका ज़बरदंस्त विरोध किया। सज्जन और उपेक्षित . 
, लोगों: ने आपकी शिक्षा को अपना लिया और मुसलमान बन - 
गये ! आप और आपके साथियों के साथ मक्का के दुष्ट लोगों 
ने तंरह-तरह की ज़ुल्म-ज़्यादतियां कीं।. - रा 
'इन सबके बावजूद अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० ' 
* ने सत्य धर्म की दावत और प्रचार-प्रसार का काम निर्भीकता-के 
साथ जारी रंखा । आप गली-गली जाकर एक-एक व्यक्ति तक. 
अल्लाह का सन्देश पहुंचाते रहे। आप लोगों को अल्लाह की 
इबादत की ओर बुलाते, उसके एक होने की शिक्षा देते, अल्लाह . 
हे | 


के साथ किसी दूसरे को साझी ठहराने से रोकते, मूर्तियों, पत्थरों, 
: पेड़ों और जिन्मों की पूजा से मना करते, बेटियों को ज़िन्दा दफ़्न 
* करने से रोकते, व्यभिचार, शराब और जुए की बुराइयां स्पष्ट . 
करते, मन को बुरे विंचारों से, ज़ुबान को गन्दी बातों से, जिस्म 
और कपड़े को गन्दगी से पाक रखने की नसीहत करते । आप. 
सल्‍्ल० उपदेश देते कि केवल अल्लाह ही सारी सृष्टि और 
दुनिया का पैदा करने वाला है। इन्सान, सूरज, चांद, सितारे सब 
उसी के पैदा किये हुए हैं और सभी उसके मुहताज हैं। अल्लाह 
ही प्रार्थनाएं सुननेवाला, इच्छाएं और आरज़ुएं पूरी करनेवाला है।... 
मरने के बाद हर व्यक्ति को उसके सामने अपनी ज़िन्दगी: का 

हिसाब पेश करना है और कर्मों के अनुसार अल्लाह पुरस्कार 

. और दंड देगा यानी जनत और जहन्नम । 

मक्का के दुष्टों ने आपको और आपके साथियों को सताना 

* और यातनाएं देना जारी रखा। हज़रत मुहम्मद सल्‍ल०' और 

आपके पूरे वंश का सामाजिक बहिष्कार किया। आप और 

आपके परिवार वाले एक घाटी में जा ठहरे और तीन साल तक , 
बड़ी कठिनाइयों का सामना किया | लोगों को अक्सर पेड़ों के 

पत्ते खाःखाकर समय बिताना पड़ता था, यहां तक कि सूखा 

चमड़ा उबालकर खाने की नौबत आ गयी | मक्का में इस्लाम 

के प्रचार-प्रसार में ज़बरदस्त रुकावटें खड़ी करने की विरोधियों 

की कोशिशों के बीच हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० ने मक्का से बाहर 

इस्लाम का सन्देश पहुंचाने की बात सोची | आप ताइफ़ नगर 

गये, जहां के लोगों ने आपके साथ अच्छा सलूक नहीं.किया। . 
उत्पीड़न का सिलसिला जब बहुत अधिक तेज़ हो गया, तो 

2 


आपको और आपके साथियों को वतन छोड़ने के लिए मजबूर 
होना. पड़ा । आप और आपके साथी मदीना चले गये | मक्का 
के विरोधियों ने वहां भी हमला किया । कई लड़ाइयों हुईं | फिर 
भी अल्लाह के रसूल सलल० का उनके साथ बड़ा ही उदारतापूर्ण 
व्यवहार रहा । जब. मक्का में सूखा और अकाल पड़ा, तो आपने - , 
मदीना से ग़लला और-राहत सामग्री भिजवाई | इस्लामी संदेश, . .. 
लोगों तक पहुंचता रहा. और 'इस्लाम अरब में हर तरफ़ फैल : 
गया लोग सत्य-मार्ग को अपनाकर अपनी ज़िन्दगियां सुभ्रारते- 
संवारतें रहे । ः ः आर 

मकक्‍कां एकेश्वरवाद क़ा प्राचीन केन्ध था। यहीं से .हज़रंत .. 
मुहम्मद सल्‍ल० को वतन छोड़कर मदीना जाना पड़ा था। 
: अल्लाह की मेहरबानी से इस्लाम बराबर फैलता रहा और- 
आख़िरकार आपको - मक्का पर विजय प्राप्त हो गयी।. - 
मुसलमानों की सेनां जब मक्का के क़रीब पहुंची तो कुरैश के . 
एक सरदारं अबू सुफ़यान, जो छिपकर टोह ले रहे थे, गिरफ्तार .. . 
कर लिये गये। उनको हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० के सामने पेश... 
किया गया, लेकिन आपने इस सख्त दुश्मन के साथ अत्यंत” 
दयापूर्ण व्यवहार किया । अबू सुफ़यान इस व्यवहार से बहुत . 
प्रभावित हुए और मुसलमान होकरं मुसलमानों की सेना में 
“ शामिल हो गये । हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० की मक्का विजय पर 
मक्केवाले बहुत आशंकित व भयभीत हुए। उन्होंने मुसलमानों .. 
. को ख़ूब सताया था और उन पर तरह-तरह से ज़ुल्मं ढाये गये 
थे। लेकिन आप सल्ल० ने उन्हें संबोधित करते हुए. कहा, “आज 
तुम्हारी कोई पकड़ नहीं । जाओ तुम सब आज़ाद हो ।” आपे ." 

43 


. सल्‍ल० प्रेम, दया और करुणा के सागर थे । आपको अल्लाह ने . 
“रहमतुल्लिल आलमीन' (सारे संसार के लिए रहमत) बनाकर 

' भेजा है। वास्तव में, दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति न॑ गुज़रा होगा, 
जिसने एक-दो नहीं, प्राय: अपने सारे दुश्मनों और विरोधियों को 
. माफ़ कर दिया और उन्हें सम्मान दिया । इस प्रकार इन्सानियत 
का उच्चतम आदर्श पेश किया । 

हज़रत -मुहम्मद सल्‍ल० के जीवन में ही अरब के. एक बड़े 
क्षेत्र पर सत्य का राज्य क़ायम हो गया। राज्य में ग़रीबों, 
उपेक्षितों और पीड़ितों को पूरा सम्मान मिला। आपने कहा-- 
“तुम अपने ग़ुलामों को वैसा ही खाना खिलाओ जैसा तुम 
ख़ुद खाते हो, और वैसा ही कपड़ा पहनाओ जैसा तुम ख़ुद 
पहनते हो, क्योंकि वे भी अल्लाह के बच्दें हैं। उनको कष्ट देना 
उचित नहीं ।” आपने कहा--'ऐ लोगो ! जान लो तुम्हारा, रब 
एक है। तुम्हारा पिता (हज़रत आदम) एक है। किसी अरबी को 
किसी ग़ैर अरबी पर कोई प्राथमिकता नहीं, म किसी ग़ैर अरबी 
को. किसी अरबी पर, न गोरे को काले पर, न काले को गोरे पर, 
प्राथमिकता अगर किसी को है तो सिर्फ़ तक़्वा और ' 
परहेज़गारी से है” अर्थात्‌ रंग, जाति, नस्ल, देश, क्षेत्र किसी' 
- श्रेष्ठा का आधार नहीं है। बड़ाई और श्रेष्ठता का आधार 
ईमान और चरित्र है। आप सल्ल० ने फ़रमाया, “वह आदमी 
ईमानवाला नहीं है, जो ख़ुद तो पेट भरकर खाये और उसका 
पड़ोसी भूखा सोये । 

हज़रत मुहम्मद सल्‍ल० के आगमन से पहले औरतों के साथ . 
अच्छा सलूक नहीं किया जाता था। उनका हर तरह शोषण 

. .  ]4 


किया जाता और उन्हें भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। 
आपने इस गन्दी मानसिकतां को बदल दिया और औरतों को 
उनके स्वाभाविंक अधिकार देकर समाज में उन्हें आदर-सम्मान 
प्रदान किया। आपने कहा-“मोमिनों में ईमान की दृष्टि से 
सबसे. पूर्ण वह है, जो तुममें अख़्लाक़ की दृष्टि से सबसे अच्छा 
“हो और तुममें सबसे अच्छा वह है जो अपनी औरों के प्रति 
अच्छा हो !” आपने कहा--“औरतों के मामले में अल्लाह से 
डरो । तुम्हारा औरतों पर और औरतों का तुम पर अधिकार है ।” 
इसी तरह लड़कियों के प्रति भेदभाव और अत्याचारपूर्ण खैये 
को सदा के लिए ख़त्म करते हुए आपने यह भी कहा कि जो 
आदमी अपनी बेटियों की अच्छी तरह परवरिश करेगा और बेटे - 
' व बेटियों के प्रति भेदभाव नहीं केरेगा, वह जनत में मेरे साथ 
. रहेगा। ः 
हज़रत मुहम्मद सलल० बहादुर होने के साथ बहुत ही नरम 
दिल थे । आप कमज़ोर लोगों के साथ ही बेज़ुबान जानवरों तंक ' 
के बारे में नरमी का हुक्म फ़रमाते थे। आप सल्‍ल० सोमवार के 
दिन 2 रबीउल अव्वल सन्‌ 4 हिजरी को ठीक दोपहर से कुछ 
पहले इस दुनिया से विदा हो गये। आप सल्‍ल० की जीवन व 
शिक्षा का सार और उद्देश्य यह है कि इन्सान अपने एकमात्र 


सख्रष्ट और पालनहार के बताये हुए मार्ग पर चलकर ही ज़िन्दगी ,/ हे 


गुज़ारे ताकि वह इस लोक और परलोक में सफलता प्राप्त कर.” 
सके । ह है; 


कक कं. 


]5 


॥ संकेताक्षर 
सल्ल० : इसका पूर्ण रूप है-सल्लल्लाहु अलेहि व सल्‍लमः . 
जिसका मतलब है कि आप पर अल्लाह की रहमत (दयालुता) 
* ओर सलामती हो। हज़ेरत मुहम्मद (सल्ल०) का नाम लिखते 
लेते या सुनते हैं तो आदर और प्रेम के लिए दुआ के ये शब्द 
बढ़ा देते हैं । ;